Sunday, 26 October 2014

                            न  मन्त्रं  नो यन्त्रं - यथा योग्यं तथा कुरु

         पुल  पार  कर लेने से नदी पर नहीं होती - वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना की यह पंक्ति उत्तराखण्ड  की टोंस घाटी में  एक पुराने झूला -पूल के सम्मुख आते ही याद  आ जाना विचित्र संयोग था। वाकई  पुल पार कर लेने और नदी पर करने में  अंतर है। पानी में उतरे बिना नदी की गहराई और धारा के वेग का पता कहाँ चल पाता  है। पुल पर  से महज अनुमान ही लगाया जा सकता है की नदी है तो गहरी भी होगी ही।
                यमुनोत्री-मार्ग पर बर्नीगाड  के चौड़े फांट  पर साहसी मत्स्य-आखेटकों को कमर से ऊपर पानी में नदी पार  करते खूब देखा  पर टोंस में यह देखना अभी  तक नसीब नहीं हुआ। १५ वर्ष पहले इसी  तमसा किनारे चार-पांच  बार तो अपना  तम्बू  गड़ा  ही था। तभी से याद है कि  इसके किनारे पर ही घुटनो पानी रहा करता  है।
          ढाई माह पहले ६ जुलाई २०१४  को  यात्री मोरी(उत्तरकाशी)-हनोल सड़क पर ' पांवो में छाले  भी होंगे फिरभी हम मतवाले होंगे' नारे को आत्मसात करते पद-यात्रा कर रहा था। मोरी से ७ किमी आगे चलकर सामने आया  एक पुराना  झूला पुल उस विचित्र संयोग का कारण बना 'पुल  के प्रवेश द्वार पर  लिखे  निर्माण वर्ष १८८८ ने कुछ देर रुकने-सोचने को विवश कर दिया।अचम्भित यात्री ने यह मान लिया था कि वह जिस जगह खड़ा है टोंस का यह छोर  वर्तमान  है तथा पार  अतीत। दोनों को जोड़ता यह संकरा पुल मनुष्य की वह गर्व गाथा है जो दोनों को बिना नदी पार  किए  अभी तक मिलाता रहा है। पार  ठडियार बंगला है इसी  का हमउम्र।  ऐसाही  अनुभव इस घटना के एक माह बाद नंदा -जात से लौटते हुए रामगंगा घाटी(अल्मोड़ा ) में हुआ।  मासी में १८८८ में बना ऐसा ही झूला पुल आज भी निर्बाध आर-पार आने-जाने का सबब बना हुआ है।                        पुल  की अहमियत पहाड़ के लोगों  से बेहतर कौन जान सकता है।एक पुल  न रहने से वहां जीवन कितना असहज हो जाता है बल्कि ठिठक जाता है। टोंस घाटी से लगे दारगाड -कठियानं   सड़क पर चार साल पहले धराशाई  हुआ पुल आज भी डराता  है।  यही दूरस्थ गांव दाँगूठा -पटियूड के विद्यार्थी बरसात में जान हथेली प
र लेकर नाला  पार  करते है। उत्तराखण्ड  में गत वर्ष आपदा से अबतक ६ पुल ध्वस्त हो चुके है। आश्चर्य भी होता है  एक ओर १२६ साल पुराने पुल टिके हुए है जबकि आज की तकनीक जमीदोज होती दिख रही है।
                    नदी पार करने में सभी सक्षम नही हैं पर दो छोर जोड़ते  पुल  सलामत रहें  दुआ ही की जा सकती है।

Thursday, 25 September 2014

न मन्त्रं नो यन्त्रं -यथा योग्यं तथा कुरु 

                                                        आचार्य शंकर को नमन इसलिए की उम्र के ५वे दशक में कदम रखते ही उनके शब्द काम आए  और मनस्ताप हरण हो सका। अन्यथा जीवनभर कुछ भ्रांतियां बनी रहती। अब जाकर यकीन हुआ की मेरे पास भी न तो कोई मन्त्र है नही कोई यंत्र। 

                                                       'अब आप ही  बताओ  कि हम  क्या करें !आप तो गांव -गांव घूमते ; घूमकर आरहे हैं। खरसाड़ी (मोरी) गांव के  एक किसान अतोल सिंह  की यह पीड़ा भरी उम्मीद उत्तराखण्ड के ग्रामीणों का समवेत स्वर है। अस्कोट-आराकोट अभियान २०१४ के यात्री ऐसे ही न जाने कितने प्रश्नों से रूबरू हुए होंगे। रवाईं क्षेत्र का यह किसान ५ जुलाई  २०१४ की शाम अपने आँगन  में जमे कुछ  अपरिचितों  से परिचय के बाद कथा-व्यथा सुनाकर समाधान की आस लगाए बैठा था शायद  इसलिए की अभियान दल में बड़े-छोटे कैमरे लेकर आये प्रोफ़ेसर पत्रकार शोधार्थी आदि थे और लोगों की पीड़ा पूछ रहे थे।  उसकी पीड़ा के मूल में तंत्र से उपजी निराशा थी। चूँकि वह अक्सर उसीसे रूबरू होता है। पटवारी पिछले बरस नदी की भेंट चढ़ चुकी धन की क्यारियों की नाप लेने तहसील मोरी से ७ किमी दूर खरसाड़ी  नहीं जा सकता क्योंकि फीता उठाने का भी पैसा   है। अपना विधायक ही "वह किसी का नौकर नहीं है " कहकर झिड़कता है तो पंचायत -चुनाव में चले तमाम हथकंडे उसे सोचने पर मजबूर करते हैं की वहां ईमानदारी के लिए जगह नहीं। 

                                           यात्री क्या वह स्वयं भी जानता है 'समाधान ' नहीं होगा पर  बतौर सांत्वना जवाब मिलता है कि दल-बल  उत्तराखण्ड के गांवों को जानने आया  है। उसकी   बातों को मीडिया  में रख सकते हैं पर समाधान स्वयं उन्हें ही खोजना है। शायद यही  जवाब वह पिछले दशक में आये यात्रियों से सुन चुका  होगा। 
                                           अआ अभियान के १९७४ से २०१४  तक पांच दशकों के आंकड़े सुरक्षित हैं और इन पर बड़े- बड़े खंड प्रकाशित हो सकते हैं पर   ग्रामीणों  के प्रश्नों  का समाधान ! अपने पास नहीं है अस्तु आचार्य शंकर के शब्दों पर यकीन हो आना लाजमी है।    

Tuesday, 12 August 2014

Na Mantram No Yantram

              न मन्त्रं नो  यन्त्रं--- यथा योग्यं तथा कुरु। 
                                               
                                             -शंकराचार्य (देव्यपराधक्षमापन स्त्रोत्रम ) 

                       आचार्य शंकर के मंतव्य और अर्थ से परे किंचित भ्रांतियों  को तोड़ने  में  सक्षम इन शब्दों  का अर्थ  मैने  अपने लिए यह गढ़ा कि ---
                      मेरे पास न तो कोई मंत्र  है नही  कोई यंत्र !
यह भी कि ---
                       जो उचित है/लगे  वह करो !
क्षम्यताम् आचार्य !
                                                                                  …अलख निरंजन